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दुर्मिल सवैया



दुर्मिल सवैया


मन पागल होय चला मिलने, पर मीत नहीं दिखता जग में।

दिल खोज रहा पर पावत ना,अति कंटक राह दिखा मन में।

मनमीत पुनीत विनीत मिले,यह सोच धँसी रहती रग में।

प्रिय मीत बसा जब से उर में,प्रति चक्र पड़ा दिखता पग में।


यदि मीत नहीं मिलता मन का, यह जीवन नर्क समान लगे।

मन व्याकुल होय सदा तड़पे, अति कष्टकरी दुख-शोक जगे।

रहती मन में नहिं शांति कभी, सब भोग-सुखाकृति जाय भगे।

सब छोडत साथ चला करते,रहते नहिं संग सहार सगे।


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1 Comments

Renu

23-Jan-2023 05:02 PM

👍👍🌺

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